''मिलन ''
बन कर मैं एक चंचल धारा
बहते बहते जा ही मिलूंगी
प्रिय से ,जो है
सागर प्यारा
मैं बन कर सौंदर्य कमलिनी
एक पोखर में खिली रहूंगी
उड़ते उड़ते आ ही मिलेगा ,मेरा प्रिय
वह श्यामल भंवरा
हिम आच्छादित 'शैल 'शिखर बन
प्रिय स्पर्श का ध्यान करूंगी
पिघल पडूँ आगोश में जिसके
है कोई क्या रवि किरन सा ?
..........नीना शैल भटनागर
मिलन ..!
ReplyDeleteबहुत ही सरस और अत्यंत ही अनुपम भाव अभिव्यक्ती ... !
शुभकामनायें !
हार्दिक आभार अनुराग जी ...इसी प्रकार अपने बहुमूल्य शब्दों की वर्षा करते रहिएगा ...:)
Deleteआपकी सारी रचनायें पढी, लाजवाब हैं सब. ब्लाग भी खूबसूरत दिख रहा है. बहुत सारी शुभकामनायें
ReplyDeleteतहेदिल से शुक्रिया गीता दीदी ...इसी प्रकार मनोबल बढ़ते रहिये और यहाँ आते जाते रहिये .....:)
Deleteati sundar rachna
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपकी उपस्थिति का और रचना को पसंद करने का ....आपकी प्रतीक्षा पुनः रहेगी ......:)
Deleteअंतस मे उठते कविमन को बहुत ही अच्छे भावों से सुसजित कर दिया आपने निसंदेह धाराप्रवाह पढ़ने के लिए प्रेरित करती रचना ,,,, बधाई आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका गुनेश्वर जी ...इसी प्रकार अपना सहयोग और समय यहाँ देते रहिएगा ...मुझे बहुत प्रसन्नता हुई आपकी उपस्थिति से ....:)
Deleteआपकी सारी रचनायें पढी, लाजवाब हैं सब...
ReplyDeleteआभार आपका मंजू जी कि आपने अपना समय मेरी रचनाओं को दिया ...आपकी टिप्पड़ियाँ मेरे लिए बहुमूल्य हैं ...बहुत बहुत आभार .... भविष्य में भी प्रतीक्षा रहेगी ...:)
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