हमे हसरत भरी नज़रों से न देखा कीजिये
कहीं ये दिल बेकाबू होकर के गुस्ताख न बन बैठे
हमारे कानों में भी चुपके से कुछ कहा न कीजिये
तेरी प्यारी बातें सुनकर कहीं मदहोश न बन बैठें
हमारी हथेलियों को हौले से ना थमा कीजिये
कहीं ये बाहें सारी हया छोड़ कर लिपट ही ना बैठें
यूँ हमसे बेपनाह मोहब्बत किया ना कीजिये
खुदा को छोड़ हम तेरी परस्तिश ही ना कर बैठें
हमारी चाहतों का इम्तेहां भी लिया ना कीजिये
कहीं दीवानगी में आके अपनी जां ना दे बैठें
.......................नीना शैल भटनागर
वाह ……बेहतरीन ग़ज़ल …… . बहुत खूब
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