‘ओस ‘
चाँदनी की चुनर पहने रात श्यामल आ गई
कौन मन बसिया था उसका, जिसके वो मन भा गयी
ऐसी रोई ज़ार ज़ार, कि ओस के मोती बहे
विरहिणी की व्यथा मानो सारी धरती ने सही
क्या मिलेगा उसका प्रिय जो जगमगाए उसका तन ?
था उसे न भान , आएगा वो ले स्वर्णिम सा धन
जकड़ बाहुपाश में टीका लगा कर हल्द का
गुम हो शबनम प्यार में छू के उसे ,एक जान सम
है वो मायावी ,कि सब पे उसका ये जादू चला
चुन लिए मोती सभी ,धरा को भी न ये खला
व्यग्र ‘शैल’ शिखर भी है, रवि के चुम्बन के लिए
पर वो मदमाता सभी को प्रेम दे , न कभी छला
........................नीना शैल भटनागर
है वो मायावी ,कि सब पे उसका ये जादू चला
ReplyDeleteचुन लिए मोती सभी ,धरा को भी न ये खला
व्यग्र ‘शैल’ शिखर भी है, रवि के चुम्बन के लिए
पर वो मदमाता सभी को प्रेम दे , न कभी छला.....
शानदार लेखन ...बहुत खूब :)
शुक्रिया ....तुम्हारी सुंदर प्रतिक्रिया का ....:)
ReplyDeleteसुन्दर !!!! :)
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया ...:)
Deleteबहुत खूब ……
ReplyDeleteशुक्रिया मंजू जी ...:)
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