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Tuesday, June 6, 2017

इश्क़

            'इश्क़'

क्यूँ तुझे देखता हूँ मैं हर सिम्त

एक आदत सी हो गयी है तू

गल्बा - इश्क जो चढ़ा मुझ पर
बस इबादत सी हो गयी है तू

बन के तू इश्क, रगों में बह कर
किस कदर मुझमें खो गयी है तू

शहरे-अय्यार के इन कूचों में
बावफ़ा  मेरी हो गयी है तू

रही ना ज़ीस्त बर्गे आवारा
कर इसे सब्ज़, जो गयी है तू
     .....
नीना शैल भटनागर


Sunday, June 4, 2017

' प्रेम'



ये खुशबू है तेरी जो मुझमे है अब तक
कहूं कैसे अब तो मैं खुद की नहीं हूँ

कभी गुम  हूँ मैं तो कभी खुद पे हंसती
ये तेरा नशा है दीवानी हुई हूँ

यकायक उठा था जो तूफ़ान उस पल
बहती रही उसमे , अब मैं नयी हूँ

हौले से कन्धों को तूने छुआ जब
तेरे सीने पे रेत सी मैं ढही  हूँ

अधरों की तेरी वो नाज़ुक छुवन थी
ऐसी तपिश , अब तक पिघल रही हूँ

ये कैसी है मस्ती जो तूने मुझे दी
कि तुझमे समां के दीवानी हुई हूँ

बाहों के बंधन जो कसते गए थे
खोलो नहीं उनको , मैं जी रही हूँ

  
              ..............
नीना शैल भटनागर    

Sunday, November 3, 2013

शुभ दीपावली

    **** || शुभ दीपावली || ****


आओ भरें प्रकाश जगत में बन कर प्रेम दियाली
 मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली ||

भर दे झोली देवी माँ , हो रात मुरादों वाली
मन से मन का दीप जले तब होती है दीवाली ||

 बंदनवार सजे द्वारे, कंदील की छटा निराली 
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||


दमके दीपों की अवली से रात अमावस वाली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||

 सुख,सम्रद्धि, प्रेम रहे, यूँ पूजा थाल सजा ली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||

 चकाचौंध आतिशबाजी की, सबका मन हर्षाली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||

 जगमग घर है, अंगनाई रंगोली आज सजा ली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||

 खुशियों से दमके चेहरे, मन दर्पन छवि बसा ली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली  ||

पावन पर्व पे करें आज प्रण, फैलाएं खुशहाली
मन से मन के दीप जले तब होती है दीवाली ||
     
  
 ****नीना शैल भटनागर****  
     



Tuesday, October 22, 2013

समर्पण








 बंध गए जो परिणय सूत्र में हम, क्षण प्रेम के अपने भाग्य के हैं
        
  भू से नभ तक अब इस तन के  ,  बंधे बंधन सौभाग्य के हैं

  अस्तित्व मेरा है अब प्रिय से, ज्यूँ कली महक कर पुष्पित हो  

  कुछ पल आह्लादित प्रेम में हैं, और चंद परस्पर त्याग के हैं 

                 
                              ........नीना शैल भटनागर 

     
                             

Monday, October 21, 2013

एहसास


             
अब और कुछ न कहो मुझसे
कहीं मन का मयूर फडफडा न उठे
देखो , छूना भी नहीं तुम मुझको
कहीं तन के तार झनझना न उठें

       अगर ऐसा हुआ तो
       रोक नहीं पाऊँगी मैं .....

              चूड़ियों की खन खन
              पायल की छम छम
              लबों की थरथराहट
               साँसों की गरमाहट

देखो यूँ न खींचो आँचल मेरा
दिल मेरा सौ बार मचल जायेगा
रोको अपनी उठती नज़रों को
तूफ़ान बंधा है सीने में , फ़िसल जाएगा

         अगर ऐसा हुआ तो
         रोक नहीं सकोगे तुम......
         
          संग मेरे बह जाओगे
          पास बहुत आ जाओगे
          सराबोर कर प्रेम लहर में
           दूर तो न हो जाओगे ? 
                 
                 
  ...........नीना शैल भटनागर  
                     



                                    

तिश्नगी


Tuesday, October 15, 2013

''मिलन ''




बन कर मैं एक चंचल धारा
बहते बहते जा ही मिलूंगी
प्रिय से ,जो है
सागर प्यारा


मैं बन कर सौंदर्य कमलिनी
एक पोखर में खिली रहूंगी
उड़ते उड़ते आ ही मिलेगा ,मेरा प्रिय
वह श्यामल भंवरा


हिम आच्छादित 'शैल 'शिखर बन
प्रिय स्पर्श का ध्यान करूंगी
पिघल पडूँ  आगोश में जिसके
है कोई क्या रवि किरन सा ?

      ..........नीना शैल भटनागर