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Tuesday, October 22, 2013

समर्पण








 बंध गए जो परिणय सूत्र में हम, क्षण प्रेम के अपने भाग्य के हैं
        
  भू से नभ तक अब इस तन के  ,  बंधे बंधन सौभाग्य के हैं

  अस्तित्व मेरा है अब प्रिय से, ज्यूँ कली महक कर पुष्पित हो  

  कुछ पल आह्लादित प्रेम में हैं, और चंद परस्पर त्याग के हैं 

                 
                              ........नीना शैल भटनागर 

     
                             

7 comments:

  1. सुंदर मुक्तक ,, सार्थक शब्द चयन ,,,

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    1. हार्दिक आभार गुनेश्वर जी ...आपकी सराहना के लिए ...इसी प्रकार अपना समय इस ब्लॉग को देते रहिये ...धन्यवाद ..:)

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  2. बहुत सुन्दर अल्फाज़ और रचना .
    मंजुल

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  3. बहुत सुन्दर अल्फाज़ और रचना .
    मंजुल

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    1. हार्दिक आभार आपका मंजुल जी...आपकी उपस्थिति इस ब्लॉग पर मेरे लिए सम्मान की बात है ...कृपया इसी प्रकार अपना समय यहाँ देते रहें ...:)

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  4. bahut sunder bhav...sunder shabd ...blog ki badhayi swikarein !!

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  5. हार्दिक आभार रीता शेखर मधु जी , आपकी उपस्थिति यहाँ पर मेरा सौभाग्य है ....सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ...इसी प्रकार अपना समय यहाँ देते रहिएगा ....:)

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