‘प्रेमानुभूति’
मुझको मुझसे प्यार बहुत ,मुझसे करता है प्यार कोई
खुशियों की सीमा ही नहीं, मेरा भी है संसार कोई
क्या ये मेरे गेसू हैं, जिसने बांधा उसको मुझसे
जिसके साए में आकर के ,कुछ उम्र गुज़ारे है कोई
शायद ये मेरी आँखें हैं , जिनको पढ़ने की ख्वाहिश में
अपनी नज़रों से प्यार किया और डूब गया जिनमें कोई
या फिर मेरे इन गालों की , देख के थोड़ी सुर्खी को
कुछ ठिठका ,फिर बढ़ ही गया ,दे गया मुझे गुलाब कोई
या फिर हैं मेरे होंठ ,कि जिनमे तड़प रहा एक नाम सदा
जो शांत हैं , पर संतुष्ट नहीं,कि चुम्बन है धरता कोई
कुछ तो होगा, जिससे जीवन में आई है हलचल ऐसी
जिनमे भूला अपना सब कुछ , संग मेरे ठहर गया कोई
......नीना शैल भटनागर
खूबसूरत एहसासों से सजी एक रूमानी रचना ...बहुत दिलकश .....:)
ReplyDeleteधन्यवाद :)
ReplyDeleteनीना : सुंदर, खूबसूरत- पर बहेतरीन नहीं....!! क्यों...? दो बातें अखरी : १] प्रथम पंक्ति में 'मुझसे' की पुनरुक्ति. २] पूरी रचना में जिस्मानी सतह पर ही वजन है.
ReplyDeleteशुक्रिया राजू आपकी टिप्पड़ी के लिए ..
ReplyDeleteहाँ ,'मुझसे ' की पुनरावृत्ति पर ध्यान दिया जा सकता था ....:)
अगर कविता की नायिका के दृष्टीकोण से देखें तो .....यह रचना एक प्रेम में सराबोर प्रेयसी की अभिव्यक्ति है और अंत में प्रेम को स्वीकार करते हुए यह भी कहा है प्रेम के कारण ही जीवन में हलचल आई और अब उस प्रेम को ठहराव भी मिल गया जो कि एक दीर्घकालीन सम्बन्ध के लिए अति आवश्यक है ....
प्रेम में जिस्मानी और भावात्मक दोनों ही पहलू होते हैं इसलिए एक के साथ दूसरे को भी अपनाना होता है और नायिका के प्रेम की अभिव्यक्ति सच्ची है क्यूंकि अंत में वह उस ठहराव को महत्व दे रही है ...