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Tuesday, October 8, 2013

'मोहब्बत के रंग '



           
  'मोहब्बत के रंग ' 


      वो दे के अपनी कसमे तकते रहे हमे ,
     हवा से ज़ुल्फ़ जो उड़ी नीयत बदल गयी

      फूलों की महक ले कर मिलते रहे उनसे,
      गजरे पे मोगरे के तबियत मचल गयी 

      चुनर थी सितारों टकी रुखसार पे मेरे
      होठों में जो दबी तो शराफत फ़िसल गयी

      हांथों की मेहंदियों में उनके ही जिक्र थे
      खनकी जो चूड़ियाँ तो सदाकत निखर गयी

       हाँ ‘शैल’ चश्म नरगिसी काजल से थे भरे

        ऐसी बसी तस्वीर ,इबादत संवर गयी
        
             

                        ................नीना शैल भटनागर


             

 

8 comments:

  1. खुबत्तर खुबसूरती से ख्यालो को कह दिया .. बहुत खुब नीना जी ..!
    जिसमें आख्रिरी शेर .. मक़्ता को उतनी संजिदगी से कहा !

    अतुल्य रस प्रवाह !
    नमन आपकी सृजनशीलता को !

    सादर
    अनुराग

    पुन: प्रकाशित

    हाँ ‘शैल’ चश्म नरगिसी काजल से थे भरे
    ऐसी बसी तस्वीर ,इबादत संवर गयी

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    1. हार्दिक आभार अनुराग जी , आपकी सुंदर और प्रोत्साहन पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए ,इसी प्रकार आते रहिये ....:)

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  2. sundar rachna
    http://nirantar-ki-kalam-se.blogspot.in/

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  3. हार्दिक आभार आपकी उपस्थिति का और आपकी सराहना का ,राजेंद्र तेला जी ....इसी प्रकार इस ब्लॉग को अपना समय देते रहिएगा ...:)

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  4. बहुत सुन्दर कोमल भावनाओं की सुन्दर श्रंगारिक अभिव्यक्ति ......

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    Replies
    1. हार्दिक आभार मंजू जी ...:)

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