'मोहब्बत के रंग '
वो दे के अपनी कसमे तकते रहे हमे ,
हवा से ज़ुल्फ़ जो उड़ी नीयत बदल गयी
फूलों
की महक ले कर मिलते रहे उनसे,
गजरे पे मोगरे के तबियत मचल गयी
गजरे पे मोगरे के तबियत मचल गयी
चुनर थी सितारों टकी रुखसार पे मेरे
होठों में जो दबी तो शराफत फ़िसल गयी
हांथों की मेहंदियों में उनके ही जिक्र थे
खनकी जो चूड़ियाँ तो सदाकत निखर गयी
हाँ ‘शैल’ चश्म नरगिसी काजल से थे भरे
ऐसी बसी तस्वीर ,इबादत संवर गयी
................नीना शैल भटनागर
Waah bahut khoob ....
ReplyDeleteshukriya :)
ReplyDeleteखुबत्तर खुबसूरती से ख्यालो को कह दिया .. बहुत खुब नीना जी ..!
ReplyDeleteजिसमें आख्रिरी शेर .. मक़्ता को उतनी संजिदगी से कहा !
अतुल्य रस प्रवाह !
नमन आपकी सृजनशीलता को !
सादर
अनुराग
पुन: प्रकाशित
हाँ ‘शैल’ चश्म नरगिसी काजल से थे भरे
ऐसी बसी तस्वीर ,इबादत संवर गयी
हार्दिक आभार अनुराग जी , आपकी सुंदर और प्रोत्साहन पूर्ण प्रतिक्रिया के लिए ,इसी प्रकार आते रहिये ....:)
Deletesundar rachna
ReplyDeletehttp://nirantar-ki-kalam-se.blogspot.in/
हार्दिक आभार आपकी उपस्थिति का और आपकी सराहना का ,राजेंद्र तेला जी ....इसी प्रकार इस ब्लॉग को अपना समय देते रहिएगा ...:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल भावनाओं की सुन्दर श्रंगारिक अभिव्यक्ति ......
ReplyDeleteहार्दिक आभार मंजू जी ...:)
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