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Monday, October 21, 2013

तिश्नगी


6 comments:

  1. करती मैं परस्तीश तेरी , तू खुदा मेरा बनता ,,, मौला मेरे , चाहूँ जो , क्यूँ वैसा नहीं होता ,,,,,, क्या बात है बहुत ही अच्छा लगा

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    1. दिली शुक्रिया गुनेश्वर जी ...आपकी दाद का ...:)

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  2. बहुत खूबसूरत ख्याल और रचना के लिए बधाई आपको नीना जी

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    1. ह्रदय से धन्यवाद आपका मंजुल जी ....:) आपकी सुंदर प्रतिक्रियाएं मेरे मनोबल को बढ़ा रहीं हैं ...इसी प्रकार यहाँ आती रहे ...:)

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  3. बहुत खुबसूरत रचना नीना जी ,बधाई .....

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    1. धन्यवाद मंजू जी आपकी सराहना का , इसी प्रकार यहाँ आकर मेरा उत्साह बढ़ाते रहिएगा ....:)

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