करती मैं परस्तीश तेरी , तू खुदा मेरा बनता ,,, मौला मेरे , चाहूँ जो , क्यूँ वैसा नहीं होता ,,,,,, क्या बात है बहुत ही अच्छा लगा
दिली शुक्रिया गुनेश्वर जी ...आपकी दाद का ...:)
बहुत खूबसूरत ख्याल और रचना के लिए बधाई आपको नीना जी
ह्रदय से धन्यवाद आपका मंजुल जी ....:) आपकी सुंदर प्रतिक्रियाएं मेरे मनोबल को बढ़ा रहीं हैं ...इसी प्रकार यहाँ आती रहे ...:)
बहुत खुबसूरत रचना नीना जी ,बधाई .....
धन्यवाद मंजू जी आपकी सराहना का , इसी प्रकार यहाँ आकर मेरा उत्साह बढ़ाते रहिएगा ....:)
करती मैं परस्तीश तेरी , तू खुदा मेरा बनता ,,, मौला मेरे , चाहूँ जो , क्यूँ वैसा नहीं होता ,,,,,, क्या बात है बहुत ही अच्छा लगा
ReplyDeleteदिली शुक्रिया गुनेश्वर जी ...आपकी दाद का ...:)
Deleteबहुत खूबसूरत ख्याल और रचना के लिए बधाई आपको नीना जी
ReplyDeleteह्रदय से धन्यवाद आपका मंजुल जी ....:) आपकी सुंदर प्रतिक्रियाएं मेरे मनोबल को बढ़ा रहीं हैं ...इसी प्रकार यहाँ आती रहे ...:)
Deleteबहुत खुबसूरत रचना नीना जी ,बधाई .....
ReplyDeleteधन्यवाद मंजू जी आपकी सराहना का , इसी प्रकार यहाँ आकर मेरा उत्साह बढ़ाते रहिएगा ....:)
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