Tuesday, October 22, 2013
Monday, October 21, 2013
एहसास
अब और कुछ न कहो
मुझसे
कहीं मन का मयूर
फडफडा न उठे
देखो , छूना भी नहीं
तुम मुझको
कहीं तन के तार
झनझना न उठें
अगर ऐसा हुआ तो
रोक नहीं पाऊँगी मैं .....
चूड़ियों की खन खन
पायल की छम छम
लबों की थरथराहट
साँसों की गरमाहट
देखो यूँ न खींचो आँचल मेरा
दिल मेरा सौ बार मचल
जायेगा
रोको अपनी उठती
नज़रों को
तूफ़ान बंधा है सीने
में , फ़िसल जाएगा
अगर ऐसा हुआ तो
रोक नहीं सकोगे तुम......
संग मेरे बह जाओगे
पास बहुत आ जाओगे
सराबोर कर प्रेम लहर में
दूर तो न हो जाओगे ?
...........नीना शैल भटनागर
Tuesday, October 15, 2013
Friday, October 11, 2013
हिन्दी-हाइगा: सावनी रंग-हाइगा में
हाइकु जापानी विधा की दुनिया की सबसे छोटी मानी जाने वाली कविता
है ....नाज़ुक सी एक सांस में बोली जाने वाली कविता ...
हाइगा जापानी पेंटिंग की एक शैली है जिसका शाब्दिक अर्थ है - 'चित्र -
हाइकु'.....हाइगा दो शब्दों के जोड़ से बना है ....(हाई = हाइकु +गा = रंग
चित्र कला )
मेरे चंद हाइकु 'सावन ' पर हाइगा के रूप में ....:)
हिन्दी-हाइगा: सावनी रंग-हाइगा में: आज का हाइगा अनोखे अंदाज में...प्रस्तुत है नीना शैल भटनागर जी के हाइकुओं पर आधारित हाइगा नीना शैल भटनागर https://www.facebook.com/nee...
Wednesday, October 9, 2013
'ये तुम हो '
' ये तुम हो '
किसने छीनी है नींद मेरी , नैनो में संवर गए तारे
ए चाँद ज़रा कह दो उनसे ये रात भी हम उन पर वारें
वो कौन है जिनकी याद में हम शरमाकर नैन झुकाते हैं
मेरे काजल उनसे कह दो इनमे तुझ संग वो समाते हैं
वो किसने छुआ है अधरों से बिजली सी काँप गयी तन में
ओ मेघा जा कह दो उनसे ,रस बरस रहा है तन मन में
किसने बांधा है बाँहों में, कि महक उठी मैं रातों में
फूलों उनसे जाकर कह दो रजनीगंधा है साँसों में
वो किसकी अगन है जिसमें कि तप कर भी जाती हूँ मैं खिल वो सूरज तो है दूर बहुत ,रवि धड़क रहे हैं बन कर दिल
.................नीना शैल भटनागर
Tuesday, October 8, 2013
'मोहब्बत के रंग '
'मोहब्बत के रंग '
वो दे के अपनी कसमे तकते रहे हमे ,
हवा से ज़ुल्फ़ जो उड़ी नीयत बदल गयी
फूलों
की महक ले कर मिलते रहे उनसे,
गजरे पे मोगरे के तबियत मचल गयी
गजरे पे मोगरे के तबियत मचल गयी
चुनर थी सितारों टकी रुखसार पे मेरे
होठों में जो दबी तो शराफत फ़िसल गयी
हांथों की मेहंदियों में उनके ही जिक्र थे
खनकी जो चूड़ियाँ तो सदाकत निखर गयी
हाँ ‘शैल’ चश्म नरगिसी काजल से थे भरे
ऐसी बसी तस्वीर ,इबादत संवर गयी
................नीना शैल भटनागर
'ओस '
‘ओस ‘
चाँदनी की चुनर पहने रात श्यामल आ गई
कौन मन बसिया था उसका, जिसके वो मन भा गयी
ऐसी रोई ज़ार ज़ार, कि ओस के मोती बहे
विरहिणी की व्यथा मानो सारी धरती ने सही
क्या मिलेगा उसका प्रिय जो जगमगाए उसका तन ?
था उसे न भान , आएगा वो ले स्वर्णिम सा धन
जकड़ बाहुपाश में टीका लगा कर हल्द का
गुम हो शबनम प्यार में छू के उसे ,एक जान सम
है वो मायावी ,कि सब पे उसका ये जादू चला
चुन लिए मोती सभी ,धरा को भी न ये खला
व्यग्र ‘शैल’ शिखर भी है, रवि के चुम्बन के लिए
पर वो मदमाता सभी को प्रेम दे , न कभी छला
........................नीना शैल भटनागर
'बेवफाई '
‘बेवफाई’
उसकी तल्खी का ये अंदाज़ –ए – बयां
साथ
अपना तो बस सफ़र तक है
मैं सजाती रही ये सोच के दीवारोदर
उनकी मंज़िल तो मेरे घर तक है
छुड़ा गए
हो जो दामन हमसे
भिगोई
अश्कों से चादर तुम्हे खबर तक है
मेरी
रुसवाइयों के किस्सों से
जला है
दिल , लपट जिगर तक है
कैसा
टूटा है ऐतबार मेरा
दिल के
टुकड़े किधर किधर तक हैं
दे दी
इन नरगिसी आँखों को सज़ा
फ़ना हुआ
है इश्क़, अश्क़ समन्दर तक है !
..............नीना शैल भटनागर
..............नीना शैल भटनागर
मेरी चाहत
हमे हसरत भरी नज़रों से न देखा कीजिये
कहीं ये दिल बेकाबू होकर के गुस्ताख न बन बैठे
हमारे कानों में भी चुपके से कुछ कहा न कीजिये
तेरी प्यारी बातें सुनकर कहीं मदहोश न बन बैठें
हमारी हथेलियों को हौले से ना थमा कीजिये
कहीं ये बाहें सारी हया छोड़ कर लिपट ही ना बैठें
यूँ हमसे बेपनाह मोहब्बत किया ना कीजिये
खुदा को छोड़ हम तेरी परस्तिश ही ना कर बैठें
हमारी चाहतों का इम्तेहां भी लिया ना कीजिये
कहीं दीवानगी में आके अपनी जां ना दे बैठें
.......................नीना शैल भटनागर
Monday, October 7, 2013
'बरखा अंतर्मन छू जाए '
‘बरखा अंतर्मन छू जाए '
रिमझिम बूँदें साथ पवन का
ख्याल
तुम्हारा क्यूँ न आये
कुछ
शीतल सी कुछ भीगी सी
हाँ, ये
पवन है कुछ हलकी सी
याद है
कुछ बीते लम्हों की
क्यूँ न
फिर ये मौसम भाए
झुकता हरसिंगार
हवा से
जैसे
मैं शर्माऊ तुमसे
कुछ है
तुममे और पवन में
तन मन
जो शीतल कर जाए
दूर गगन
में हुई कालिमा
मोती
बिखरे हर पत्ते पे
व्याकुल
काले मेघ चलें यों
जैसे कि
आलिंगन चाहें
अब तो
बूँदें ठहर चुकी हैं
कुछ
बादल में, कुछ पत्तों पे
पर ये
हवा , हल्के से छूकर
तेरा ही
एहसास कराये
अब कैसे इनकार करूँ कि
बरखा अंतर्मन छू जाये
बरखा अंतर्मन छू जाये
.................
..................नीना शैल भटनागर
'प्रेमानुभूति '
‘प्रेमानुभूति’

मुझको मुझसे प्यार बहुत ,मुझसे करता है प्यार कोई
खुशियों की सीमा ही नहीं, मेरा भी है संसार कोई
क्या ये मेरे गेसू हैं, जिसने बांधा उसको मुझसे
जिसके साए में आकर के ,कुछ उम्र गुज़ारे है कोई
शायद ये मेरी आँखें हैं , जिनको पढ़ने की ख्वाहिश में
अपनी नज़रों से प्यार किया और डूब गया जिनमें कोई
या फिर मेरे इन गालों की , देख के थोड़ी सुर्खी को
कुछ ठिठका ,फिर बढ़ ही गया ,दे गया मुझे गुलाब कोई
या फिर हैं मेरे होंठ ,कि जिनमे तड़प रहा एक नाम सदा
जो शांत हैं , पर संतुष्ट नहीं,कि चुम्बन है धरता कोई
कुछ तो होगा, जिससे जीवन में आई है हलचल ऐसी
जिनमे भूला अपना सब कुछ , संग मेरे ठहर गया कोई
......नीना शैल भटनागर
गणपति वंदना
गणपति वंदना
हे एकदंत, हे गजानन ,हे गणपति महाराज !
शिव गौरी के पुत्र सदा नमन तुम्हे गजराज
तिथि चतुर्थ भादों शुक्ल, अभिन्दन भगवंत
हर लो सारे पाप प्रभु ,बन जावे सब काज
तारो हमको भवसागर से, काटो सारे क्लेश
बंदनवार सजाकर अर्पित करूँ पुष्प औ मोदक
तेरे चरणों में अरिहंता ,सफल हो जीवन शेष
................नीना शैल भटनागर
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