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Tuesday, June 6, 2017

इश्क़

            'इश्क़'

क्यूँ तुझे देखता हूँ मैं हर सिम्त

एक आदत सी हो गयी है तू

गल्बा - इश्क जो चढ़ा मुझ पर
बस इबादत सी हो गयी है तू

बन के तू इश्क, रगों में बह कर
किस कदर मुझमें खो गयी है तू

शहरे-अय्यार के इन कूचों में
बावफ़ा  मेरी हो गयी है तू

रही ना ज़ीस्त बर्गे आवारा
कर इसे सब्ज़, जो गयी है तू
     .....
नीना शैल भटनागर


2 comments:

  1. प्रेम और इश्क से लाबोलब खूबसूरत शेर ...

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    1. बहुत शुक्रिया Digambar Naswa जी

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