'इश्क़'
क्यूँ तुझे देखता हूँ मैं हर सिम्त
एक आदत सी हो गयी है तू
गल्बा - ए – इश्क जो चढ़ा मुझ पर
बस इबादत सी हो गयी है तू
बन के तू इश्क, रगों में बह कर
किस कदर मुझमें खो गयी है तू
शहरे-अय्यार के इन कूचों में
बावफ़ा मेरी हो गयी है तू
रही ना ज़ीस्त बर्गे – आवारा
कर इसे सब्ज़, जो गयी है तू
.....नीना शैल भटनागर
क्यूँ तुझे देखता हूँ मैं हर सिम्त
एक आदत सी हो गयी है तू
गल्बा - ए – इश्क जो चढ़ा मुझ पर
बस इबादत सी हो गयी है तू
बन के तू इश्क, रगों में बह कर
किस कदर मुझमें खो गयी है तू
शहरे-अय्यार के इन कूचों में
बावफ़ा मेरी हो गयी है तू
रही ना ज़ीस्त बर्गे – आवारा
कर इसे सब्ज़, जो गयी है तू
.....नीना शैल भटनागर